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हस्तस्य भूषणं दानं ।
हाथ का आभूषण दान है।।


दान का शाब्दिक अर्थ है - देने की क्रिया।

सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। एक हाथ से दिया दान हजारों हाथों से लौटकर आता है ।

वैदिक दर्शन बताता है कि जब हम भगवान की सेवा में हर चीज का उपयोग करते हैं तो हर चीज का उद्देश्य और पूर्णता प्रकट होती है। आपके उदार योगदान के लिए धन्यवाद और निश्चिंत रहें, 

आपके दान का 100%  सनातन संस्कृति की सेवा में उपयोग किया जाएगा!

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offering food to the monk

Why You Should Donate to Charity ?
आपको दान क्यों देना चाहिए?

I am Arani Manthan and I completely support Sanatan Research’s mission to preserve, research, and promote the timeless knowledge of Sanatan Dharma. Donating to Sanatan Research is an investment in the future, as we aim to promote Hindu cultural awareness and increase knowledge of ancient Vedic sciences. Sanatan Research is dedicated to studying and promoting the wisdom of the ages, and your generous donation can help advance this noble mission.

अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते ।

जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते ॥
यदि बीज छोटा है, तो बीज जमीन पर गिर जाएगा और पानी का मिश्रण बड़ा हो जाएगा। साथ ही पानी से बने हमारे पृथ्वी-आधारित दान के कारण, हमारा पेड़ बढ़ता है।

Alpamapi kshitau kshiptam vata beejam pravardhate I

Jalayogaat yatha daanaat punya vruksho api vardhate II
 

Even though the seed is very small in size,when properly watered , from that grows the mighty banyan tree. Even so, from charity grows the mighty ' punya ' tree.

इस मन से दिया दान नष्ट हो जाता है ।

यद् दत्त्वा तप्यते पश्चाद ।
देने के बाद पश्चात्ताप होना।

पात्रेभ्यस्तथा च यत् ।।
अपात्र को देना।

अश्रद्धया च यद्दानं ।
श्रद्धारहित देना ।।

 

दान देने से क्या लाभ ?
लोग दान इसलिए देते हैं क्योंकि उन्हें बदले में कुछ चाहिए। एक व्यक्ति सुख देता हैं क्योंकि उसे बदले में सुख चाहिए। लोग मोक्ष के उद्देश्य से दान नहीं देते। जब आप देते हैं, जो आप देंगे, वही आप पाएँगे। यह नियम हैं। दूसरों को देने पर 'हम' पाते हैं और दूसरों से छीन लेने पर हम 'खोते' हैं।

आहारदान, औषधदान, ज्ञानदान और  अभयदान।

दान के प्रकार होते हैं- एक माया के निमित्त किया गया दान और दूसरा भगवान के निमित्त किया गया दान। 

पहले दान में स्वार्थ होता है और दूसरे दान में भक्ति।

किसी की मदद करके भूल जाना ही दानी की पहचान हैं,

किसी को शाश्वत सुख का अनुभव कब होता है? जब आप दुनिया में अपनी सबसे अधिक प्यारी चीज़ दूसरों को दे दें।

लोगों को पैसों से अत्यधिक लगाव है। अतः धन को जाने दीजिए, बहा दीजिए।
उसके बाद ही आपको पता चलेगा कि जितना आप जाने देंगे, उतना ही अधिक आपके पास आएगा।

आत्मा और दान के बीच कोई संबंध नहीं है, तो फिर क्या दान देना ज़रूरी हैं?

वक्ता दशसहस्त्रेषु दाता भवति वा न वा ॥
शूर सौ में एक, पण्डित हजार में एक और वक्ता दसहजार में एक हो सकता है; पर दाता तो कोई मुश्किल से ही मिलता है

जो दान देता है,
मैं इसे देना नहीं, बांटना कहूंगा, जो इंसान का स्वाभाविक गुण है। आपस में बांटने से ही खुशियां कई गुना हो जाती हैं।

 
दान करने से सभी तरह के दैहिक, मानसिक और आत्मिक ताप मिट जाते हैं। 

दान करने से सभी तरह के दोष मिट जाते हैं। 

दान करने से घर परिवार में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता है और सुख समृद्धि बनी रहती
 

 सबसे बड़ा दान | एक नेवले की कथा-

दान पर प्रेरणादायक कहानी

कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांचों पांडव भाईयों ने एक महान दान यज्ञ का आयोजन किया और गरीबों को बहुत बड़े उपहार दिए। सभी लोगों ने महानता और समृद्धि पर विस्मय व्यक्त किया और कहा कि इस तरह का दान दुनिया में पहले कभी नहीं देखा।

लेकिन, समारोह के बाद, वहाँ एक नेवला आया, जिसका आधा शरीर सुनहरा था, और आधा भूरे रंग का।  और वह समारोह हॉल के फर्श पर लोटने लगा। और उसने आसपास के लोगों से कहा-

आप सभी झूठे हैं; यह कोई महान दान नहीं है।

“क्या!”, सभी ने अचरज से कहा।

दान पर कहानी

दान पर कहानी 

“तुम कहते हो कि यह कोई बड़ा दान नहीं है; क्या तुम नहीं जानते कि यहाँ आने वाले गरीबों को कैसे पूर्णतः सन्तुष्ट किया गया, हर एक की झोली बेशकीमती उपहारों से भर दी गयी?  ऐसा महान दान ना पहले हुआ है और ना कभी होगा।

लेकिन नेवला उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ। वह बोला –

“एक बार एक छोटा सा गाँव था, उसमें एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी, बेटे और बहू के साथ रहता था। वे बहुत गरीब थे और जीवन-यापन के लिए वे उपदेश के बदले में मिलने वाले दान पर निर्भर रहते थे।

लेकिन एक बार उस गाँव में तीन साल का अकाल पड़ा। गरीब ब्राह्मण के परिवार का निर्वाह होना बहुत कठिन हो गया।

आखिर में गरीब ब्राह्मण बड़ी मुश्किल से भूख से बिलखते अपने परिवार के लिए कहीं से जौ का आटा लेकर आया। बिना किसी देरी के परिवार ने इससे रोटियां तैयार कीं, आटा  कम होने के कारण चार रोटियां ही बन पायीं.  सभी के हिस्से में एक-एक रोटी आई.

मैं चुपचाप एक कोने में बैठा हुआ ये सब देख रहा था कि काश मुझे भी कुछ खाने को मिल जाए।

पर होनी में तो कुछ और ही लिखा था…चारों रोटी खाने को तत्पर हुए कि तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।

पिता ने दरवाजा खोला, वहां एक अतिथि खड़ा था।

अतिथि ने ब्राह्मण से कहा कि मैं कई दिनो से भूखा हूँ,  मुझपर कृपा करिए, मेरे प्राण भूख से बचा लीजिए।

अतिथि को भगवान का दर्जा देने वाला ब्राह्मण फ़ौरन बोला, “आपका स्वागत है, कृपया अपना स्थान ग्रहण कीजिये, मैं अभी आपको भोजन कराता हूँ।” और ऐसा कह कर उस निर्धन ब्राहमण ने अपने हिस्से की रोटी अतिथि के सामने परोस दी.

अतिथि तो मानो बरसों से भूखा था, पलक झपकते ही उसने रोटी ख़तम कर दी और बोला, “ओह, आपने तो मुझे मार ही दिया; मैं दस दिनों से भूखा हूँ, और एक रोटी से मेरा कुछ नहीं होने वाला, इससे तो मेरी भूख और भी बढ़ गयी… जल्दी से और रोटियां लाइए।”


पिता असमंजस में पड़ गया। वह अपने भूख से तड़पते परिवार को अपने हिस्से की रोटी देने के लिए नहीं कह सकता था.

लेकिन तभी पत्नी ने पति से कहा, “उन्हें मेरा हिस्सा भी दे दीजिये,”

पति ने इनकार कर दिया.

तब  पत्नी ने  ने जोर देकर कहा, “यह मेरा एक पत्नी के रूप में कर्तव्य है।”

फिर उसने अतिथि को अपना हिस्सा दे दिया.

उसे खाने के बाद अतिथि और रोटियाँ मांगने लगा.

इस बार बेटा आगे बढ़ा और यह बोलते हुए अपनी रोटी अतिथि को परोस दी कि, “यह एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सम्मान रखने में कोई कसर ना छोड़े।”

अतिथि ने बेटे का हिस्सा भी खाया, लेकिन फिर भी असंतुष्ट रहा। तब बेटे की पत्नी ने भी उसे अपना हिस्सा भी दे दिया।

अथिति अब संतुष्ट था उसे उसकी पर्याप्त खुराक मिल चुकी थी। वह उन्हें आशीर्वाद दे वहां से चला गया।

लेकिन अतिथि के जाने के कुछ देर बाद ही उन चारों अभागों की भुखमरी से मौत हो गई।

फिर नेवला आगे बोला-

उन चारों को मरा देख मैं वहां से घबरा कर भागा तभी मेरे शरीर का कुछ भाग जमीन पर गिरे आँटो के कणों से छू गया और जैसा कि आप देख सकते हैं, तभी से मेरा आधा शरीर सुनहरा हो गया। 

तब से मैं पूरे देश का भ्रमण कर रहा हूँ कि कहीं तो मुझे उस तरह का एक और महान दान देखने को मिल जाए, और वहां की पवित्र भूमि पर लोट कर मैं अपना बाकी का शरीर भी सोने में बदल सकूँ। लेकिन अब तक मुझे उस उच्च कोटि का दान देखने को नहीं मिला, इसलिए मैं कहता हूं कि यह कोई महान दान नहीं है।


 फिर भी हम सबको अपने स्तर पर अर्थात जितना हो सके दूसरों की सहायता करते रहना चाहिए,

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